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    Friday, February 7, 2025

    जमुई गरही इको-टूरिज्म एकीकृत परियोजना संरक्षित करें और इसके विकास में सहयोग करें।

    जमुई गरही इको-टूरिज्म एकीकृत परियोजना संरक्षित करें और इसके विकास में सहयोग करें।

    बिहार के जमुई जिले में सिकंदरा-खैरा प्रखंड की सीमा पर घने जंगल और गरही पहाड़ियों की गोद में बसा है एक पावन ऐतिहासिक स्थल, जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर का जन्म स्थान जो क्षत्रिय कुंड के नाम से भी प्रसिद्ध है. जैन धर्म के श्वेताम्बर संप्रदाय की आस्था के अनुसार यह वह धरती है जहाँ जैन धर्म के भगवान महावीर ने जन्म लिया।

    यह पवित्र भूमि प्राचीन काल से श्वेताम्बर जैन धर्मावलंबियों के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल रही है। यहाँ सफेद संगमरमर से निर्मित भव्य जैन मंदिर अपनी उत्कृष्ट नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान महावीर की काली पत्थर की अ‌द्भुत प्राचीन प्रतिमा विराजमान है, जो भक्तों को शांति और ज्ञान का मार्ग दिखाती है।

    गरही पहाड़ियों का यह क्षेत्र जैन सर्किट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सर्किट भगवान महावीर के जीवन से जुड़े पाँच प्रमुख कल्याणक स्थलों को जोड़ता है। क्षत्रिय कुंड को भगवान महावीर का जन्म कल्याणक, श्वेताम्बर जैन कुंडघाट को च्वयन कल्याणक तथा लछुआर को दीक्षा कल्याणक मानते है। ये तीनो स्थान गरही पहाड़ियों में स्थित है।


    साथ ही साथ पहाड़ियों की घाटी में स्थित गरही बांध स्वयं में एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है जो अपनी प्रा कृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है।

    यहाँ पहाड़ी, जंगल तथा जल का अ‌द्भुत प्राकृतिक परिदृश्य, पर्यटकों और श्र‌द्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है, जहाँ वे प्रकृति के अद्‌भुत नजारों का आनंद ले सकते हैं।

    गरही पहाड़ी की इन्ही शृंखलाओं में काफ़ी संख्या में विशाल शैलाश्रय स्थित है । इन शैलाश्रयों में अति प्राचीन काल के शैलचित्र के साक्ष्य मिले है जिसमे मानव पेड़ जानवर पक्षियों आदि का अंकन प्रमुख है ।

    पुराने समय से ही गरही पहाड़ियों के बीच एक पारंपरिक पैदल मार्ग मौजूद है, जो कुडघाट तथा लछुआर को महावीर के जन्मस्थान से जोड़ता है। हालाँकि, कुंडघाट बांध के निर्माण के कारण, इस मार्ग का लगभग 2 किलोमीटर हिस्सा जलमग्न हो गया है, जिससे उस हिस्से को पार करना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो गया है। 

    जन्मस्थान मंदिर तक पहुँचने में तीर्थयात्रियों की सहायता के लिए, जंगली पहाड़ियों के बीच एक पक्की सड़क बनाई गई है। इस सड़क के दो प्रवेश बिंदु हैं, एक प्रवेश बिंदु कुंडघाट से है, जबकि दूसरा गरही बांध के सामने स्थित है।

    वर्तमान में जैन तीर्थयात्रियों के साथ जन्मस्थान, लछुआर तथा गरही बांध पर हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं।

    यहाँ, कुछ विशेष अवसरों पर पर्यटकों की बढ़ती संख्या 1 से 1.5 लाख तक पहुँच जाती है, जो इस क्षेत्र की लोकप्रियता और महत्ता को प्रमाणित करती है। वर्तमान में पर्यटक और तीर्थयात्री बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं । साथ ही साथ इस ऐतिहासिक क्षेत्र के गौरवान्वित विरासत और संस्कृति को जनमानस तक पहुँचाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

                       माननीय मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार जी के दूरदर्शी सोच और परिकल्पना के परिणामस्वरूप गरही ईको पर्यटन परियोजना का क्रियान्वयन किया जायेगा ।इसके अंतर्गत गरही बांध, महावीर जन्मस्थान और कुंडघाट पर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना, क्षेत्र के समृद्ध इतिहास और विरासत के बारे में जन-जन तक जागरुकता फैलाना, गरही बांध पर धार्मिक पर्यटन के अलावा प्राकृतिक पर्यटन विकसित करना, पर्यटकों के लिए अन्य आकर्षण पैदा करना, गरही नेचर पार्क का निर्माण, पारंपरिक मार्ग का पुनरुद्धार करना, और पर्यटकों के ठहरने हेतु ।गरही बांध इको रिट्रीट का निर्माण समेत अन्य बुनियादी पर्यटन सुविधाएँ शामिल रहेगी।

                      इस विकास परियोजना का उ‌द्देश्य न केवल तीर्थयात्रियों के अनुभव को बेहतर बनाना है, बल्कि गरही पहाड़ियों की प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर को भी सुरक्षित रखना है।

                      आइए, हम सब मिलकर इसे संरक्षित करें और इसके विकास में सहयोग करें।

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